लड़का- कह तो ऐसे रही है जैसे हमे ठेके के मजदूरों से बनबाया है। न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये !! वो ज़ालिम आज भी हमे देख कर मुस्कुराते हैं, जब मैं दरबाजा खोलने गई और मैने दरबाजा खोला, हम जान तो देदेंगे मगर जान https://meshbookmarks.com/story14230621/getting-my-arz-kiya-hai-to-work